Tuesday, May 24, 2011

Photo-Album

कविता करने की एक ख़ास बात ये है, कि आप अपने मन के अन्दर झाँक पाते हो। कविता एक ऐसा जरिया बन पाती है, जिससे आप वो सब जो अपने बारे में जान पाए हो उसे व्यक्त कर सकते हो।
शायद, इसे मेरा पर्सनल ओपिनियन भी मान सकते हैं आप, मगर इस बात में मुझे कोई शक नहीं है कि.....ज़िन्दगी में दो दफा बड़ी ख़ुशी होती है, एक जब आप खुद में खुद को पा लें और दूसरी जब आप किसी और में खुद को पा लें।
नीची लिखी हुई कविता उसी ख्वाहिश में खुद को टटोलती कुछ पंक्तियाँ हैं.....सो जो मन में दबा मिला लिख दिया......शायद अच्छी हो शायद न भी...मगर मुझे तसल्ली है कि मैंने हर दूसरे शब्द पर खुद को खुद के और नजदीक पाया है।
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कुछ चीज़ें बदलना ही चाहती हैं।
कुछ हम बदल नहीं पाते हैं।
मैंने कमरा बदल लिया ,
दिल तो नहीं था मगर
करना ज़रूरी था।
मकानमालिक के लड़के की शादी हो चुकी है।
खैर नया कमरा तो ले ही लिया आखिर,
मन का तो नहीं है पर मन ही तो है।
बहुत कुछ जो बिखरा था, इकठ्ठा भी कर ही लिया
और जो काफी वक़्त से इकठ्ठा था
वो फिर बिखर गया है।
नए कमरे पर सारा सामान यूँ ही पड़ा है।
जैसे कोने में किसी बंजारे का काफिला खड़ा है।
बहुत सारी चीज़ें, जिनको अरसे से सोचा भी नहीं था
अरमानों की तरह सामान में बंधा पड़ा मिला है।
मेरी पीली रंग की कैंची,
थोडा कम
मगर बरसों से उतना ही पड़ा gum,
गुस्सैल सी cycle की चैन,
ज़िन्दगी की पहली कविताओं की diary,
साथ में बड़े अक्षरों वाली stencil,
जिसका P, &, S,
घिसा था
और वो चुराई हुई Slambook जिस पर
पहले प्यार का सारा
Information मिला था,
फिर वही पुरानी फोटो एल्बम
खोज के निकाली।
वही जो कॉलेज के दिनों की
बड़ी खूबसूरत बानगी है।
जो बहुत ही ख़ास है
जो उसी सफ़ेद-लाल पोलीथिन में,
मेरे पास है।
पोलीथिन का निचला हिस्सा शायद जल गया था।
पिघला फटा हुआ है वैसा ही आज भी।
जाने हमेशा
उस पर नज़र पहले क्यूँ जाती है ।
खैर मैंने एल्बम निकाली
और साथ में रखे negatives के लिफाफे भी थे।
दो rolls के negatives के लिए
चार लिफाफे क्यूँ थे भगवान् जाने।
मगर दिलचस्पी तो negatives में थी,
Digital के ज़माने में negative की बड़ी fancy होती है ना।
मैंने negatives निकाले, और tubelight ke नीचे
जाने कितने चेहरे पहचाने।
छुपाउंगा नहीं
मुझे तुम्हारे चेहरे की तलाश थी।
मिला तो, पर बड़ा अजीब था
और उसका developed फोटो भी
शायद तुम्हारे पास था।
पर negatives देखने में
सच में मज़ा बड़ा आता है।
खैर बारी थी album की,
बच्चों सी उत्सुकता थी
album खोली और खोलते ही,
तुम्हारी दो तसवीरें फिसल पड़ीं।
मुझे तो उन्ही को revise करना था
पर कुछ ज्यादा जल्दी ही हो गया
मगर मैंने उन्हें ज्यादा देर तक नहीं देखा।
एक फोटो Medium Close-Up था,
तुम Extreme right में
मूर्ति के साथ
मूर्ति सी खड़ी थी।
अच्छी नहीं दिख रहीं थी।
दूसरा एक wide shot था,
कहने को कुछ साफ़ नहीं था।
पता नहीं इतनी दूर से फोटो क्यूँ लिया था,
शायद मुझको तुमसे प्रेम कम था।
पन्ना पलटा तो तुमने एक मेरा
फोटो खींचा हुआ था,
मुझे याद है बड़ी हिम्मत से request किया था।
Extreme wide shot लिया था तुमने
और कहने को तो छोड़ो,
दिखने को भी कुछ साफ़ नहीं था।
शायद तुमको भी मुझसे प्रेम नहीं था।
चंद और पन्नो में चंद और
प्रकृतिक एवं देखने योग्य अलग अलग फोटो कैद थे।
Analog कैमरा और Educational trip
पे ऐसे ही फोटो वैध थे।
नज़ारे बुरे नहीं थे,
बस इन नज़रों में कुछ दोस्तों के
कभी सर तो कभी वो पुरे टहल रहे थे।
ये analog कैमरे की दुनिया भी अजीब दीवानी है,
ठीक को कोई फोटो पूरी ठीक नहीं थी।
पर किस्सों को जुबां यूँ लम्बी थी।
एक दोस्त दीवार पर चढ़ा खिलखिला रहा था,
तो एक फोटो में,
दोस्तों का समूह हंसी छुपा रहा था।
कुछ और काम की तसवीरें थी,
उसमे से एक जब मैंने तुमसे
जान-बूझ के बात बढाने की जुर्रत की थी।
चंद और खूबसूरत तसवीरें
शायद किसी मंदिर जैसी जगह की थी
पता नहीं नाम याद नहीं रहते।
फिर कॉलेज का असली रंग
कुछ बेतरतीब नाचते कूदते
लड़के लडकियां
कुछ तो मेरे दोस्त थे
कुछ के बारे में मेरी जानकारी
ज़रा और भी कम है
और हाँ फिर जिसे मेरी नज़र
बहुत देर से ढून्ढ रही थी
एक तस्वीर जिसमे मैं भी
दूर कहीं पीछे
बेतरतीब सा नाच रहा हूँ
और सच कहूँ तो
मैं भी कुछ अच्छा नहीं दिख रहा हूँ।
कुछ चीज़ें बदलना ही चाहती हैं।
कुछ हम बदल नहीं पाते हैं।



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पलोक

7 comments:

  1. got nostalgic...............saari puraani baatein yaad aa gayi........miss dose dayzzzz !!!

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  2. are yaar i don't have any thing say to u but yaar tu kmaal hai seriously ,,,,,,, love u dude,,,,,,,,

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  3. Nice one... as Ankit said saari puraani baatein yaad aagayi... true....

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  4. bahut sahi, a very very good matured writer.., d collection n heat of all these facts which are in our life.. gud luck..

    aur haan maine isey 4 baar padha, mujhe ek jagah laga to batana chahunga..
    ek jagah hai..
    और कहने को तो छोड़ो,
    दिखने को भी कुछ साफ़ नहीं था।
    शायद तुमको भी मुझसे प्रेम नहीं था।

    yahan change ho jaye to aur bhi accha hoga..
    और दिखने को तो छोड़ो,
    कहने को भी कुछ साफ़ नहीं था।
    शायद तुमको भी मुझसे प्रेम नहीं था।... will it work?

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  5. Thank you for your valuable appreciation....especially for reading it 4 times....and yes i do agree with your view on the stanza....but i believe in the flow of sequence it goes good as.....main kavita mein kuch purani cheezon ko kai din baad dekhkar un par apna khayal keh raha hun aur us tasveer ke baare mein kuch kehne ko nahin tha....kyunki usme kuch thik se dikh nahin raha tha jise pyaar na dikhne se compare kiya gaya...
    but i think in terms of emotions your idea works more...!

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  6. well said that.. yahan pyar na dikhne par zor diya jaa raha hai.. par wo ek dum se strike karna chahiye... haan ek mayane me ye bhi ho sakta hai..
    ek acchi soch rakhne ke liye.. bahut accha..

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